श्रृंग्वेरपुर धाम में हुआ था श्रीराम और निषादराज का मिलन
श्रृंगवेरपुर धाम का एक अपना अलग और पौराणिक महत्व है। इस घाट से ही भगवान श्रीराम को निषादराज केवट ने नाव से चित्रकूट जाने के लिए नाव से पार कराया था।
भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद जब केवट ने अयोध्या छोड़ने का निर्णय लिया तब श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ से केवट की मुलाक़ात कराई थी। उस दौरान केवट को खुद को गरीब और श्रीराम को राजा होने की बात कही थी। जिसके बाद राजा दशरथ ने अपने राज दरवार में केवट का राज्याभिषेक कर श्रृंगवेरपुर का राज्य दे दिया था। इसके बाद से श्रृंग्वेरपुर के राजा के रूप में निषादराज केवट को लोग जानने लगे। वनगमन के दौरान जब राजा राम, उनकी सिया सीता और भाई लक्ष्मण वनवास पर जाने लगे तो चित्रकूट जाने के लिए इसी घाट पर केवट से उनकी मुताक़ात हुई थी। जहां केवट ने गंगा जल से प्रभु श्रीराम के चरणों को धोकर पिया था और अपनी नाव से उन्हे गंगा नदी पार कराया था। तब से लेकर आज तक यह श्रृंग्वेरपुर घाट विख्यात और प्रसिद्ध है।
इसी घाट पर राम ने निषादराज को लगाया था गले
भगवान श्रीराम और निषादराज केवट के मिलन के उस दृश्य को अज भी उनके कुल के लोगों ने जीवंत कर रखा है।श्रृंगवेरपुर घाट ओर भगवान ने उन्हें गले लगाया उस। वनगमन के दौरान सबसे पहले सामाजिक समरसता का संदेश दिया था। उस परंपरा को और आगे बढ़ाते हुए योगी सरकार उसे सामाजिक समरसता का प्रतीक बनावाया है। वहां निषादराज और भगवान राम के मिलन की 51 फीट ऊंची प्रतिमा तैयार हो चुकी है। एक बड़ा पार्क भी तैयार किया जा चुका है।
योगी सरकार ने तैयार की है बड़ी योजना
पार्क देशी-विदेशी पर्यटकों व श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बने इसके लिए वहां खूबसूरत लैंडस्केपिंग, साइनेज, मयूरेल-फ्रेस्को पेंटिंग, भव्य प्रवेश द्वार, गजीबो, सीसी रोड और बाउंड्रीवाल का निर्माण शामिल है। बाउंड्रीवाल पर श्रीराम और निषादराज के मिलन के समय की अन्य प्रमुख घटनाओं को भी उकेरा जायेगा। इस बाबत वित्तीय वर्ष 2020-2021 करीब 144.49 करोड़ रुपये की योजना मंजूर दी गई थी। इसके अलावा केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन स्कीम के तहत रामायण सर्किट में आने वाले श्रृंगवेरपुर धाम के पर्यटन विकास के लिए 69.45 करोड़ रुपये स्वीकृत हुआ था। इनसे श्रंगवेरपुर में निषादराज स्थल पर 177 मीटर लंबा संध्या घाट, टूरिस्ट फैसिलिटेशन सेंटर, पार्किंग, लास्ट माइल कनेक्टिविटी, सोलर लाइटिंग, राम शयन और सीताकुंड का काम पूरा हो चुका है।